किसान भाइयो भारतीय चना बाजार देश की कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत विश्व का सबसे बड़ा चना उत्पादक और उपभोक्ता है, जो वैश्विक खपत का 70 प्रतिशत से अधिक अकेले उपयोग करता है। इस बाजार की मुख्य बातें हैं मजबूत घरेलू मांग, सरकारी सहायता, और कभी-कभी आपूर्ति और खपत को संतुलित करने के लिए आयात की आवश्यकता। पिछले एक साल में चना बाजार में काफी उतार-चढ़ाव आया है। 2024 की शुरुआत में आपूर्ति की चिंताओं और मजबूत मांग के कारण कीमतें 8000 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चली गईं, लेकिन साल के दूसरे भाग और 2025 की शुरुआत में कीमतों में गिरावट आई, जिसका कारण बड़े पैमाने पर आयात (जैसे पीला मटर) और सरकारी हस्तक्षेप था। मई 2025 की शुरुआत में दिल्ली में चने की कीमतें 5700 से 5800 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं। कृषि मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में चना उत्पादन का अनुमान 1.104 करोड़ टन लगाया था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 1.227 करोड़ टन से कम था। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए प्रारंभिक अनुमान 1.154 करोड़ टन था, लेकिन 2025 की शुरुआत में आए नए अनुमानों से बेहतर रबी फसल की उम्मीद है। Whatsapp ग्रुप में जुड़ने के लिए ज्वाइन करे 👉🏻 ज्वाइन करे
चना क्या है वर्तमान स्थिति
दिल्ली में वर्तमान में चने की कीमतें 5,750 से 5,800 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास हैं, जिनमें पिछले एक महीने में 150 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि दर्ज की गई है। मार्च में ये कीमतें घटकर 5,450 से 5,500 रुपए प्रति क्विंटल तक आ गई थीं, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,650 रुपए प्रति क्विंटल से भी कम थीं। महाराष्ट्र की अकोला मंडी में, जो चने के व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, कीमतें अब बढ़कर 6,025-6,050 रुपए प्रति क्विंटल हो गई हैं, जबकि एक महीने पहले ये 5,800 से 5,825 रुपए प्रति क्विंटल थीं। सरकार ने 2023-24 के लिए चने का उत्पादन 1.22 करोड़ टन और 2024-25 के लिए 1.15 करोड़ टन अनुमानित किया है, लेकिन व्यापार जगत के अनुमान क्रमशः 88 लाख टन और 95 लाख टन हैं, जो सरकारी अनुमानों से काफी कम हैं। यह अंतर मुख्य रूप से किसानों द्वारा चने की बुवाई छोड़कर अधिक लाभकारी फसलों जैसे काबुली चना, गेहूं, मक्का, गन्ना और जीरा की ओर रुख करने के कारण है। भारत में चने की औसत न्यूनतम खपत लगभग 85 लाख टन मानी जाती है, जिसके अनुसार देश में सामान्यतः 1 करोड़ से 1.05 करोड़ टन का स्टॉक होना चाहिए। वर्तमान फसल उत्पादन अनुमानों से स्पष्ट है कि चने की आपूर्ति कम बनी हुई है, जिससे आने वाले महीनों में भारत को पर्याप्त उपलब्धता बनाए रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ सकता है। सरकारी भंडारण की स्थिति भी चिंताजनक है, क्योंकि आमतौर पर सरकारी एजेंसियां लगभग 25 लाख टन चने का स्टॉक रखती हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए लगातार बिक्री के कारण ये भंडार घटकर केवल 50,000 टन तक पहुंच गए हैं। इसके अतिरिक्त, अप्रैल के अंत तक खरीद के आंकड़े भी 1 लाख टन के स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं। Whatsapp ग्रुप में जुड़ने के लिए ज्वाइन करे 👉🏻 ज्वाइन करे
क्या चना का भाव 6000 को पार कर पायेगा
पिछले दो दिनों में दिल्ली लारेंस रोड पर चना का भाव 100 रूपये तक तेज हुआ है और राजस्थान लाइन पर चना का भाव 5950 पर पहुंच गया है बात करे आगे क्या रह सकता है तो सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर मौजूद चने के स्टॉक को ध्यान में रखते हुए, आने वाले महीनों में इसकी कीमतें 6,500 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंचने की संभावना बताई जा रही है। बुवाई के मौसम के दौरान, जब बीज और मौसमी मांग दोनों ही उच्च स्तर पर होते हैं, तो यह वृद्धि 7,000 रुपए प्रति क्विंटल तक भी जा सकती है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सरकार के पास कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय उपलब्ध हैं। विशेष रूप से, चना न केवल हमारे कुल दलहन उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा है, बल्कि इसकी कीमतें अन्य दालों के लिए भी एक बेंचमार्क के रूप में कार्य करती हैं। ऐसी स्थिति में, सरकार स्टॉक घोषणाओं को अनिवार्य कर सकती है, भंडारण की सीमाएं लागू कर सकती है, और चना तथा पीली मटर के लिए शून्य शुल्क पर आयात की अनुमति देकर कीमतों को बढ़ने से रोक सकती है। भारत का चना बाजार, जिसका अनुमानित वार्षिक कारोबार 50,000 करोड़ रुपए है और जिसके अगले एक दशक में 6.3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है, वैश्विक औसत 5.4 प्रतिशत से अधिक है। लम्बी अवधि तो चना में तेजी के आसार है बाकि व्यापार अपने विवेक से करे Whatsapp ग्रुप में जुड़ने के लिए ज्वाइन करे 👉🏻 ज्वाइन करे